कंपनियों की असंवेदनशीलता और मजदूरों की सुरक्षा: कटनी हादसे का सबक
कंपनियों की असंवेदनशीलता और मजदूरों की सुरक्षा: कटनी हादसे का सबक
दूसरा, सरकार और नियामक संस्थाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है


हाल ही में मध्य प्रदेश के कटनी में हुए एक दुखद हादसे ने एक बार फिर औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों की सुरक्षा और कंपनियों की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। लार्सन एंड टूब्रो (एलएनटी) कंपनी के एक निर्माण स्थल पर, कैलवारा फाटक के पास, रेलवे की हाईटेंशन लाइन की चपेट में आने से एक मजदूर, सेम्युअल सरकर, गंभीर रूप से घायल हो गया। यह हादसा न केवल कंपनी की लापरवाही और सुरक्षा नियमों के उल्लंघन को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे कॉरपोरेट असंवेदनशीलता मजदूरों के जीवन को खतरे में डाल रही है।एलएनटी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी, जो इंजीनियरिंग और निर्माण के क्षेत्र में भारत की अग्रणी कंपनियों में से एक है, से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कर्मचारियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। लेकिन कटनी में हुआ यह हादसा इस बात का प्रमाण है कि सुरक्षा मानकों को लागू करने में गंभीर चूक हुई। सेम्युअल सरकर, जो पश्चिम बंगाल से आकर मेहनत-मजदूरी कर रहे थे, एक क्रेन के माध्यम से ओवरब्रिज निर्माण के दौरान लोहे की भारी प्लेट हटा रहे थे। इस दौरान रेलवे की हाईटेंशन लाइन के करीब काम करने की अनुमति देना और उचित सुरक्षा उपकरणों का अभाव कंपनी की लापरवाही को स्पष्ट करता है। यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी और मजदूरों के प्रति असंवेदनशीलता का परिणाम है।औद्योगिक हादसे कोई नई बात नहीं हैं। भारत में हर साल सैकड़ों मजदूर निर्माण स्थलों पर असुरक्षित परिस्थितियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं या गंभीर रूप से घायल होते हैं। श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में निर्माण क्षेत्र में 1,000 से अधिक घातक हादसे दर्ज किए गए। इनमें से अधिकांश हादसे अपर्याप्त सुरक्षा उपायों, प्रशिक्षण की कमी और लापरवाही के कारण होते हैं। कटनी का यह हादसा इस बात की याद दिलाता है कि कॉरपोरेट मुनाफे की होड़ में मजदूरों की जान को कितनी आसानी से जोखिम में डाल दिया जाता है।सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को कैसे रोका जाए? सबसे पहले, कंपनियों को अपने सुरक्षा मानकों को सख्ती से लागू करना होगा। हाईटेंशन लाइनों जैसे खतरनाक क्षेत्रों में काम करने से पहले मजदूरों को उचित प्रशिक्षण, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (जैसे हेलमेट, दस्ताने, और इंसुलेटेड जूते), और जोखिम मूल्यांकन अनिवार्य होना चाहिए। एलएनटी जैसी कंपनियां, जो पहले ही व्यक्तिगत सुरक्षा साधनों और क्लाउड-आधारित तकनीकों में निवेश कर चुकी हैं, को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये तकनीकें केवल कागजों पर न रहें, बल्कि कार्यस्थल पर प्रभावी ढंग से लागू हों।दूसरा, सरकार और नियामक संस्थाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन और नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करना होगा। निर्माण स्थलों पर सुरक्षा ऑडिट को अनिवार्य करना चाहिए, और उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर कठोर दंड लगाए जाने चाहिए। साथ ही, मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि वे असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने से इंकार कर सकें।तीसरा, कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत कंपनियों को मजदूरों के कल्याण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। कटनी हादसे में घायल मजदूर को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया, जो एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। कंपनियों को घायल मजदूरों और उनके परिवारों के लिए दीर्घकालिक मुआवजे, पुनर्वास, और चिकित्सा सहायता की व्यवस्था करनी चाहिए।यह भी विचारणीय है कि मजदूर, जो किसी भी निर्माण परियोजना की रीढ़ होते हैं, अक्सर सबसे कमजोर वर्ग से आते हैं। प्रवासी मजदूरों, जैसे सेम्युअल सरकर, को न केवल असुरक्षित परिस्थितियों में काम करना पड़ता है, बल्कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक असुरक्षा का भी सामना करना पड़ता है। कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि मजदूरों को न केवल उचित वेतन और सुविधाएं मिलें, बल्कि उनकी गरिमा और जीवन की भी रक्षा हो।कटनी का यह हादसा एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाता है कि विकास की चमक-दमक के पीछे मजदूरों का खून-पसीना और कभी-कभी उनकी जान भी छिपी होती है। एलएनटी जैसी कंपनियों को अपनी प्रतिष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना होगा। यह समय है कि हम मुनाफे से ज्यादा मानव जीवन को प्राथमिकता दें। मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल नैतिक दायित्व है, बल्कि एक स्वस्थ और टिकाऊ अर्थव्यवस्था की आधारशिला भी है।
