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कटनी नगर निगम का 41 लाख का “हरा-भरा गड़बड़झाला”: बरसात खत्म, अब पौधरोपण का टेंडर!

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महापौर और निगम आयुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल, जनता की गाढ़ी कमाई दांव पर

महापौर और निगम आयुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल, जनता की गाढ़ी कमाई दांव पर( राहुल झा की रिपोर्ट )

राहुल झा की रिपोर्ट

कटनी, 30 अगस्त 2025नगर निगम कटनी की कार्यप्रणाली एक बार फिर विवादों के घेरे में है।

महापौर प्रीति संजीव सूरी और निगम आयुक्त निलेश दुबे के नेतृत्व में लिया गया एक फैसला शहरवासियों के लिए चर्चा और आक्रोश का विषय बन गया है।

पुरानी कहावत “ का वर्षा जब कृषि सुखाने” को नजरअंदाज करते हुए निगम ने बरसात का मौसम खत्म होने के बाद 41 लाख रुपये के पौधरोपण का टेंडर जारी किया है। सवाल यह है कि जब पौधरोपण का सबसे उपयुक्त समय बरसात का होता है, तो यह टेंडर अब क्यों? क्या यह जनता की मेहनत की कमाई को ठेकेदारों की जेब में डालने की साजिश है, या महज प्रशासनिक लापरवाही?

41 लाख का “हरा-भरा” खेल: समय और संसाधन की बर्बादी?नगर निगम के टेंडर के अनुसार, ठेकेदार को शहर में विभिन्न स्थानों पर पौधरोपण करना होगा, जिसके लिए 120 दिन का समय निर्धारित है। लेकिन टेंडर प्रक्रिया में ही 2-3 महीने लगने की संभावना है, जिसके बाद सर्दियों का मौसम शुरू हो जाएगा।

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में पौधों के जीवित रहने की संभावना बेहद कम होती है। ऐसे में यह टेंडर न केवल समय के खिलाफ है, बल्कि 41 लाख रुपये की जनता की मेहनत की कमाई को जोखिम में डालने वाला कदम भी प्रतीत होता है।

विशेषज्ञों की चेतावनी:

बरसात ही है पौधरोपण का सही समयपर्यावरणविद् डॉ. अनिल शर्मा के अनुसार, “बरसात का मौसम पौधरोपण के लिए सबसे अनुकूल होता है। इस दौरान मिट्टी में नमी और तापमान पौधों की जड़ों को मजबूत करने में मदद करते हैं। सर्दी या गर्मी में लगाए गए पौधों के मरने की आशंका 70-80% तक बढ़ जाती है।”

इस वैज्ञानिक तथ्य को जानते हुए भी नगर निगम ने इस महत्वपूर्ण समय को क्यों नजरअंदाज किया?

क्या यह केवल प्रशासनिक अक्षमता है, या इसके पीछे कोई और मंशा है?

जनता में आक्रोश: “हमारा पैसा, हमारा हक”कटनी के नागरिकों में इस टेंडर को लेकर भारी नाराजगी है।

स्थानीय निवासी रमेश यादव ने गुस्से में कहा, “हर साल नगर निगम ऐसे फैसले लेता है, जिनसे जनता का पैसा बर्बाद होता है। अगर पौधरोपण करना ही था, तो जून-जुलाई में क्यों नहीं हुआ?”

वहीं, शालिनी वर्मा, एक सामाजिक कार्यकर्ता, ने सवाल उठाया, “यह टेंडर किसे फायदा पहुंचाने के लिए है?

निगम को इसकी पूरी पारदर्शिता जनता के सामने रखनी चाहिए।” नागरिकों की मांग है कि निगम इस टेंडर की प्रक्रिया, ठेकेदारों के चयन और पौधों की गुणवत्ता पर स्पष्ट जानकारी दे।महापौर और आयुक्त की जवाबदेही पर सवालइस टेंडर ने महापौर प्रीति संजीव सूरी और निगम आयुक्त नीलेश दुबे की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।क्या निगम ने पौधरोपण की योजना को समय पर लागू करने में लापरवाही बरती?

क्या इस टेंडर के पीछे ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की मंशा है?क्या निगम की प्राथमिकताएं जनहित से हटकर किसी और दिशा में हैं?इन सवालों का जवाब निगम के जिम्मेदार अधिकारियों को देना होगा, क्योंकि यह जनता के विश्वास का सवाल है।

पहले भी हो चुके हैं ऐसे विवादयह पहली बार नहीं है जब कटनी नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं। अभी हाल ही जारी सफाई के टेंडरों में अनियमितताओं के आरोप लगे थे। पर्यावरण के नाम पर पहले भी कई योजनाएं शुरू की गईं, लेकिन अधिकांश पौधे समय के अभाव या रखरखाव की कमी के कारण सूख गए। क्या इस बार भी वही कहानी दोहराई जाएगी?

आगे की राह: पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरीनगर निगम को चाहिए कि वह इस टेंडर पर पुनर्विचार करे और पौधरोपण की योजना को अगले बरसात के मौसम तक स्थगित करे।

साथ ही, निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:पारदर्शी प्रक्रिया: टेंडर की पूरी प्रक्रिया, ठेकेदारों के चयन और बजट के उपयोग की जानकारी सार्वजनिक की जाए।

विशेषज्ञों की सलाह: पौधरोपण से पहले पर्यावरण विशेषज्ञों से परामर्श लिया जाए ताकि पौधों की जीवित रहने की संभावना बढ़े।रखरखाव की योजना: पौधरोपण के बाद उनके रखरखाव के लिए ठोस योजना बनाई जाए, जिसमें पानी, खाद और नियमित देखभाल शामिल हो।

जनभागीदारी:

स्थानीय नागरिकों और स्वयंसेवी संगठनों को पौधरोपण और रखरखाव में शामिल किया जाए।जनता की नजर निगम परकटनी की जनता की नजर अब नगर निगम के अगले कदम पर टिकी है। क्या निगम इस “हरा-भरा” टेंडर को जनहित में बदल पाएगा, या यह 41 लाख रुपये का सपना सूखे पौधों की तरह बिखर जाएगा?

अगर निगम समय पर कदम नहीं उठाता, तो यह गड़बड़झाला न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि जनता का भरोसा भी खो देगा।

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