Katni news कटनी में छठ महापर्व की धूम: डूबते सूर्य को अर्घ्य, घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब
कटनी। लोक आस्था का महापर्व छठ सोमवार को शहर में पूरे वैभव और श्रद्धा के साथ मनाया गया। सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और मंगल कामनाओं का प्रतीक यह पर्व डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ शुरू हुआ। व्रतियों ने कमर भर पानी में खड़े होकर सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की।

Katni chhat pooja:कटनी में छठ पूजा का उत्सव: डूबते सूर्य को अर्घ्य, घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
कटनी। छठ महापर्व का पहला दिन सोमवार को शहर में अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ संपन्न हुआ। सुख-समृद्धि व संतान सुख की कामना से उपवास रखने वाले व्रतियों ने सायंकाल कमर भर पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। गायत्रीनगर बाबाघाट, छपरवाह चक्कीघाट और अन्य घाटों पर बिहार-झारखंड-पूर्वांचल के प्रवासियों की भारी भीड़ जुटी। मंगलवार भोर में उगते सूर्य को अर्घ्य के बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत पारण के साथ समाप्त होगा।
घाटों की मनमोहक सजावट, गाजे-बाजे के साथ आगमन
घाटों को रंग-बिरंगी लाइट्स, फूल-मालाओं और झालरों से सजाया गया। गुरुवार रात्रि से ही परिवारों का जत्था ढोल-नगाड़ों के साथ पहुंचने लगा। व्रतियों ने पूरे विधान से सूर्य और छठी मैया का पूजन किया। जनप्रतिनिधियों व स्थानीय गणमान्यों ने घाटों पर पहुंच शुभकामनाएं दीं।
छठ गीतों की गूंज, घरों से घाट तक भक्ति रस
छठी मैया के पारंपरिक गीतों ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। कई दिनों से घरों में ठेकुआ, खरना प्रसाद, फल-सब्जियों की तैयारियां चल रही थीं।
गन्ने के मंडप, सजे सूप और जल पूजन
महिलाओं ने गन्ने से आकर्षक मंडप बनाए और बांस के सूप सजाए। इनमें ठेकुआ, लड्डू, नारियल, मौसमी फल, सब्जियां, साड़ी व अन्य सामग्री रख मैया को चढ़ाई। जल में खड़े होकर धूप-दीप से अर्घ्य और पूजन संपन्न हुआ। दोपहर बाद से सूप-टोकरी लिए श्रद्धालु घाटों की ओर बढ़ चले।
मेला जैसा माहौल, आतिशबाजी व सुविधाएं
बाबाघाट व चक्कीघाट पर मेला सा नजारा रहा। खिलौने, सजावट सामग्री, गृहस्थी दुकानें सजीं। बच्चों ने झूले लिए, युवाओं ने आतिशबाजी की। पूर्वांचल सांस्कृतिक समिति ने सज्जा-पार्किंग, नगर निगम ने सफाई-पेयजल, विद्युत विभाग ने रोशनी की व्यवस्था की।
सूर्यषष्ठी: शुद्धता का संदेश
सूर्य और छठी मैया की संयुक्त पूजा वाला यह पर्व सूर्यषष्ठी कहलाता है। स्वच्छता, शुद्धता और पर्यावरण संरक्षण की सीख देता है।
कर्मभूमि बनी पूजा स्थली
बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग अब घर लौटने की बजाय कटनी में ही छठ मना रहे हैं। घाटों की भीड़ इस बदलाव की गवाह बनी।
