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Katni City News: हजारों साल पुराने शैल चित्र देख छात्र छात्राएं हुए रोमांचित

देश की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं उन्नयन की दिशा
कटनी सिटी.काम। देश की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं उन्नयन की दिशा में क्रियाशील संस्था इन्टैक( भारतीय सांस्कृतिक निधि ) कटनी चेप्टर द्वारा दिनांक 19 से 25 नवम्बर तक मनाये जा रहे ‘ विश्व धरोहर सप्ताह ‘ के तारतम्य में शिकागो पब्लिक स्कूल के 250 छात्र छात्राओं को 19 से 23 नवम्बर तक झिंझरी वन विभाग परिसर स्थित चितरंजन शैल पार्क का भ्रमण कराया गया ।

कटनी सिटी.काम।देश की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं उन्नयन की दिशा
कटनी सिटी.काम। देश की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं उन्नयन की दिशा में क्रियाशील संस्था इन्टैक( भारतीय सांस्कृतिक निधि ) कटनी चेप्टर द्वारा दिनांक 19 से 25 नवम्बर तक मनाये जा रहे ‘ विश्व धरोहर सप्ताह ‘ के तारतम्य में शिकागो पब्लिक स्कूल के 250 छात्र छात्राओं को 19 से 23 नवम्बर तक झिंझरी वन विभाग परिसर स्थित चितरंजन शैल पार्क का भ्रमण कराया गया । गत 23 नवम्बर को ग्लोरी मॉर्निंग स्कूल अमाडी के 12 छात्र छात्राएं भी अपनी शिक्षिका नीतू पटेल के नेतृत्व में शैल पार्क भ्रमण को पहुँचे । जिन्हे इन्टैक कन्वीनर श्री मोहन नागवानी , को कन्वीनर राजेन्द्र सिंह ठाकुर तथा श्री के. एल. कनकने द्वारा शैल चित्रों के इतिहास एवं महत्व के बारे में जानकारी प्रदान की गईं । उल्लेखनीय है कि झिंझरी स्थित पहाडी क्षेत्र में छतरीदार ( छज्जेदार )चट्टानों की एक लम्बी श्रंखला है जिनका आकर्षक स्वरुप सामान्य चट्टानों से सर्वथा अलग प्रतीत होता है । जिनमें हजारों साल पूर्व मानव द्वारा बनाए गए सैकड़ों चित्र अंकित हैं । जिनमे उस समय के मानव जीवन के परिवेश के दृश्य अंकित हैं । प्रागैतिहासिक काल में जब मनुष्य ने अपने आवास के लिए आवास का अविष्कार नहीं किया था , उस समय मानव इन चट्टानों की आड़ में आश्रय लेता था । ये छतरीदार चट्टाने उसे धूप , वर्षा तथा ठंडी एवं गर्म हवाओं से बचाती थीं । आते जाते राहगीर भी समय समय पर यहां आश्रय लेते थे । जिससे ये चट्टानें शैलाश्रय कही जाती हैं फ़ुरसत के क्षणों मानव प्राकृतिक रंगों से इन चट्टानों में अपने परिवेश को भी चित्रित कर देता था । उक्त शैलाश्रयों को सर्वप्रथम वर्ष 1958 में श्री वाकणकर जी ने खोजा था । तत्पश्चात वर्ष 1977 – 78 में ए. एस. आई . की प्रागैतिहासिक शाखा की टीम द्वारा इस स्थल की शैल कला का अध्ययन किया गया था । जिसमें यहां विंध्य बलुआ पत्थर की चौबीस चित्रित शैलाश्रय की श्रंखला पाई गई थी । इन शैलाश्रयों में जंगली और घरेलू जानवरों सहित शिकार , नृत्य और युद्ध मुद्रा के दृश्य चित्रित हैं । इसके अलावा हथेलियों की छाप,ज्यातिमीय डिजाइन ,पुष्प अलंकरण , और अनुष्ठानों के प्रतीकात्मक चित्र भी हैं ।जिन्हे सफेद, हल्के पीले, गेरुआ ,क्रोम ,नारंगी ,गहरे लाल एवं नीबू जैसे रंगों से रंगा गया है ।चितरंज पार्क के मनोरम ऐतिहासिक स्थल में पहुंच अपनी विरासत से रुबरु होकर छात्र छात्राएँ बेहद आनंदित और रोमांचित हुए । गत 23 नवम्बर को पहुँचे भ्रमण दल ने स्थल से वापसी के पूर्व वन विभाग के डी. एफ. ओ. श्री राजीव शर्मा, एसडीओ फॉरेस्ट राहुल मिश्रा, रेंज ऑफिसर एलपी चौधरी से सौजन्य भेंट भी की । इस अवसर पर श्री राजीव शर्मा द्वारा बच्चों का स्वागत करते हुए शैल चित्रों के बारे में कुछ विशिष्ट जानकारियां प्रदान की गईं तथा अपनी विरासत के संरक्षण के प्रति उन्हे सजग रहने को प्रेरित किया गया । छात्र छात्राओं द्वारा भी शैल पार्क को और व्यवस्थित करने का आग्रह करते हुए उनके प्रति घन्यवाद ज्ञपित किया गया भ्रमण में शिकागो शाला के कृष्ण कुमार सिंह एवं रानी खरे का विशेष सहयोग रहा।