जबलपुर, 03 सितंबर 2025। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सोमवार को एक सनसनीखेज घटनाक्रम सामने आया, जब अवैध खनन से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने खुद को केस से अलग कर लिया। वजह बनी भाजपा विधायक संजय पाठक द्वारा फोन पर संपर्क करने की कोशिश, जिसे जज ने न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप मानते हुए गंभीरता से लिया। इस ‘फोन कांड’ ने न केवल कानूनी हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी भूचाल ला दिया है।
न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा, “श्री संजय पाठक ने इस मामले में चर्चा करने के लिए मुझसे फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया है। इसलिए, मैं इस केस की सुनवाई नहीं करना चाहता।” अदालत ने इस घटना को अत्यंत गंभीर बताते हुए मामले को मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ के पास स्थानांतरित कर दिया। अब मुख्य न्यायाधीश तय करेंगे कि अगली सुनवाई किस बेंच के समक्ष होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाती है और आगे की जांच की मांग को बल दे सकती है।
मामला ‘आशुतोष दीक्षित बनाम ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा)’ से जुड़ा है। याचिकाकर्ता आशुतोष दीक्षित ने ईओडब्ल्यू में बड़े पैमाने पर अवैध खनन की शिकायत दर्ज कराई थी। जांच में देरी होने पर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसी बीच, भाजपा विधायक संजय पाठक—जो मूल रूप से मामले के पक्षकार नहीं थे—ने हस्तक्षेप याचिका दाखिल की। इसके अलावा, निर्मला पाठक और यश पाठक की ओर से भी हस्तक्षेप आवेदन (आईए 16218/2025) दायर किया गया, जिसने विवाद को और बढ़ावा दिया।
संजय पाठक, जो कटनी जिले से भाजपा विधायक हैं और खनन व्यवसाय से जुड़े रहे हैं, की इस याचिका को कई लोग उनके निजी हितों से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, विधायक की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में तनावपूर्ण माहौल रहा। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस.आर. ताम्रकार और अंकित चोपड़ा ने दलीलें पेश कीं, जबकि ईओडब्ल्यू की तरफ से मधुर शुक्ला ने पक्ष रखा। हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अंशुमान सिंह और वासु जैन ने बहस की। जज ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया, जो न्यायिक इतिहास में एक दुर्लभ उदाहरण बन सकता है।
इस घटनाक्रम ने कानूनी लड़ाई को राजनीतिक रंग दे दिया है। विपक्षी कांग्रेस ने भाजपा पर न्यायपालिका पर दबाव बनाने का सीधा आरोप लगाया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “यह न्याय को प्रभावित करने की नंगी कोशिश है। संजय पाठक का फोन कांड भाजपा की सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करता है।” वहीं, भाजपा की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर आगामी चुनावों के मद्देनजर।
सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है, जहां यूजर्स न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर चिंता जता रहे हैं। कुछ ने इसे ‘फोन टैपिंग’ या ‘दबाव की राजनीति’ का हिस्सा बताया।
मुख्य न्यायाधीश अब नई बेंच गठित करेंगे, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विवाद अदालत की चारदीवारी तक सीमित रहेगा? कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि जज के आदेश के बाद विधायक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई या जांच की संभावना है। यदि यह मामला विधानसभा या चुनावी मुद्दा बनता है, तो मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो सकता है।
यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि न्याय और राजनीति के बीच की रेखा कितनी पतली है। हम इस मामले पर आगे की अपडेट्स के लिए नजर रखे हुए हैं।
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