Sawan somwar: जिले के इन स्थानों पर सावन के पहले सोमवार पर उमड़ेगी भीड़
Sawan somwar : सावन के पहले सोमवार के अवसर पर जिले के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। जिले के प्रसिद्ध रूपनाथ धाम श्रद्धालु पहुंचेंगे। बरही के विजयनाथ धाम सहित शहर के मधई मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे।
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Sawan somwar : सावन के पहले सोमवार के अवसर पर जिले के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। जिले के प्रसिद्ध रूपनाथ धाम श्रद्धालु पहुंचेंगे। बरही के विजयनाथ धाम सहित शहर के मधई मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे।
पहाडियों के एक सिरे पर स्थित रूपनाथ धाम है। पहाड़ी में स्थित कुंड यहां राम के आने की कहानी कहते हैं।सबसे नीचे का कुंड सीता कुंड, मध्य का लक्ष्मण कुंड और सबसे ऊपर भगवान राम का कुंड है। ऐसी मान्यता है कि अपने वन गमन के समय यहां राम आए थे। उन्हीं के प्रतीक स्वरूप इस पहाड़ी में यह कुंड बने।
रूपनाथ धाम में पंचलिंगी शिव प्रतिमा है, जिसे रूपनाथ के नाम से जाना जाता है। रूपनाथ धाम के पुजारियों के बताए अनुसार यहां को लेकर मान्यता है कि जागेश्वरधाम बांदकपुर के लिए भगवान भोलेनाथ यहीं से गए। प्रकृति की गोद में बसे रूपनाथधाम में कई जिलों से लोग पहुंचते हैं। शिवरात्रि में यहां विशेष पूजन अर्चन होता है।
प्राकृतिक कुंडों में भरा पानी, गुफा में विराजे भगवान भोलेनाथ, चारों ओर अनूठी प्राकृतिक छटा और इन सभी के बीच में सम्राट अशोक के शिलालेख, यह सब मौजूद है, जिले की बहोरीबंद तहसील के ऐतिहासिक स्थल रूपनाथधाम में। पुरातत्व महत्व व लोगों की आस्था का केन्द्र यह स्थल अपने आप में अनूठे रहस्यों से भरा है। पहाड़ी के विशाल पत्थरों के बीच बनी गुफा और सम्राट अशोक के शिलालेख तीनों को लेकर अलग-अलग चर्चाएं हैं। कहा जाता है कि 232 ईसा पूर्व तक शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक मौर्य (सम्राट अशोक) जिले के छोटे से नगर बहोरीबंद के समीप स्थित रूपनाथ में रुके थे। रूपनाथ धाम में उनके रहने व ठहरने सहित कई उपयोगी शिलालेख व उनके माध्यम से कराए गए निर्माण उनके ठहरने का आज भी प्रमाण देते हैं
विजयनाथधाम बरही : यहां हर वर्ष बढ़ रहा भोले नाथ का आकार
जिले के धार्मिक पर्यटनों में से एक बरही का विजयनाथधाम है। विजयनाथ धाम मंदिर में हर सोमवार को भगवान का विशेष शृंगार आरती होती है। महाशिवरात्रि पर शिव बारात निकाली जाती है।
लगभग 120 वर्ष पुराने इस स्थान को लेकर अलग-अलग किवदंती हैं। बताते हैं कि मंदिर को अंग्रेजी शासन काल में बरही में पदस्थ थानेदार दुर्गा प्रसाद पांडेय ने बनवाया है। बताया जाता है कि उन्हें भगवान भोलेनाथ ने स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर स्थल के पास जमीन पर दबे होने की जानकारी दी थी। जिसके बाद शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। ऐसी जनश्रुति है कि जमीन से निकला शिवलिंग छोटा था, लेकिन उसका आकार हर साल बढ़ता जा रहा है।
मधई मंदिर कटनी: यहां जमीन से खोद कर निकाले गए भोलेनाथ
200 साल से अधिक पुराने इस शिव मंदिर में शिवरात्रि में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी।शहर के सबसे प्राचीन शिव मंदिर मधई मंदिरों में एक है। शिवरात्रि पर यहां श्रद्धालुओं सैलाब उमड़ता है। सावन सोमवार पर भगवान भोलेनाथ का पूजन अभिषेक करने के लिए बड़े ही उत्साह के साथ श्रद्धालु पहुंचते हैं।
कटनी शहर के बीच में ही स्थित है यह प्राचीन शिव मंदिर। इस मंदिर को श्रद्धालु मधई मंदिर के नाम से जानते हैं। जानकारी के अनुसार लगभग 200 साल पहले यह मंदिर अस्तित्व में आया। एक भक्त को भगवान भोलेनाथ ने स्वप्न दिया और भूमि से प्रकट हुए। सन 1817 में एक शिवभक्त को भोलेनाथ ने स्वप्न दिया कि मैं इस जंगल में हूं। शिवलिंग का खनन कराकर प्राण प्रतिष्ठा कराओ। शिवभक्त ने स्वप्न के बारे में परिजनों सहित शहर के लोगों को बताया। उसके बाद जमीन को खोदकर शिवलिंग निकाला गया और स्थापना की गई।जानकारी के अनुसार शिवलिंग के प्राकट्य के बाद तीन दिनों तक बड़े ही धूमधाम से महोत्सव मनाया गया। पहले एक पेड़ के नीचे चबूतरे में शिवलिंग को स्थापित किया गया, फिर मंदिर निर्माण होने पर वेदपाठी ब्राम्हणों के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। देश के कोने-कोने से दर्शन के लिए श्रद्धालु शिवलिंग प्राकट्स महोत्सव में शामिल हुए।छोटे से मंदिर में विराजे भगवान भोलेनाथ की 1950 में कृपा बरसी और मंदिर ने बड़ा आकार लिया। मधई मंदिर मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार कराया गया। विशेष नक्कासी वाला मंदिर तैयार हुआ और फिर पुन: भोलेनाथ की बड़े मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराई गई।