सोमवार भोलेनाथ का दिन है। आज भोले शंकर की आराधना का विधान है। भगवान भोलेनाथ का स्वरूप अपने आप में बहुत कुछ कहता है।
भगवान भोलेनाथ की जटा, भगवान भोलेनाथ बैल की सवारी, सभी में अर्थ छिपे हैं।
समय का प्रतीक चंद्रमा
चंद्रमा, समय का प्रतीक है इसलिए वह समय चक्र से भी अवगत कराते हैं।
प्राणियों का विश्राम स्थल जटा
महादेव की जटाओं को वट वृक्ष की संज्ञा दी जाती है, जो समस्त प्राणियों का विश्राम स्थल है। मान्यता है कि बाबा की जटाओं में वायु का वेग भी समाया हुआ है।
मस्तक पर नेत्र विवेक का भी प्रतिनिधित्व
मस्तक पर नेत्र विवेक का भी प्रतिनिधित्व भी करता है। शिव को त्र्यंबक भी कहा जाता है, उनकी दाईं आंख में सूर्य का तेज और बाईं आंख में चंद्र की शीतलता है। ललाट पर स्थित तीसरे नेत्र में अग्नि की ज्वाला विद्यमान है, ताकि दुष्टों को नियंत्रित रखा जा सके।
अर्धनारीश्वर रूप शक्ति का प्रतीक
अर्धनारीश्वर में शिव और शक्ति का समावेश है। शिव जी का अर्धनारीश्वर रूप शक्ति का प्रतीक है, इस रूप के मूल में सृष्टि की संरचना है।अर्धनारीश्वर सृजन का प्रतीक हैं, शक्ति बिना सृष्टि संभव नहीं है।
डमरू नाद ब्रह्म का प्रतीक
शिव जी के हाथ में डमरू नाद ब्रह्म का प्रतीक है। जब डमरू बजता है तो आकाश, पाताल एवं पृथ्वी एक लय में बंध जाते हैं। रिदम बिना जीवन संभव नहीं है, हृदय की गति एक रिदम पर है।
त्रिशूल तीन मूलभूत शक्तियों का प्रतीक
शिव जी का त्रिशूल इच्छा, क्रिया और ज्ञान रूपी तीन मूलभूत शक्तियों का प्रतीक है। इसी त्रिशूल से वह न्याय करते हैं। महादेव इसी से सत्व, रज और तम तीन गुणों को नियंत्रित रखते हैं।
सर्प कुंडली की आकृति
सांप तीन बार शिव के गले में लिपटे रहते है जो भूत, वर्तमान एवं भविष्य का प्रतीक हैं। शक्ति की कल्पना कुंडली की आकृतिजैसी की गई है, इसलिए उसे कुंडलिनी कहते हैं।
बाघ की खाल यानी बाघंबर ऊर्जा का प्रतीक
शिव जी वस्त्र के रूप में बाघ की खाल यानी बाघंबर धारण करते हैं।महादेव का यह वस्त्र अत्याधिक ऊर्जा युक्त होता है। देवी की कृपा से ये वस्त्र ऊर्जा शक्ति के प्रतीक हैं।
श्मशान की राख जीवन का सत्य
जन्म-मृत्यु के चक्र पर नियंत्रण करते हैं। श्मशान की राख जीवन के सत्य को परिभाषित करती है। शिव जी अपना श्रृंगार श्मशान की राख से करते हैं।शिव का एक रूप सर्वशक्तिमान महाकाल का भी है।
वृष कामवृत्ति का प्रतीक
वृष कामवृत्ति का प्रतीक भी है। संसार के पुरुषों पर वृष सवारी करते हैं और शिव जी वृष पर सवार होते हैं क्योंकि शिव जितेंद्रिय हैं।
भगवान शिव से जुड़ी विशेष जानकारी
शिव के 6 पुत्र – गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा।
सात शिष्य : जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज मुनि भी थे।
शिव की गुफा
शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है।
शिव के गण
शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
शिव पार्षद
जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं। उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
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