शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघ वर्णं शुभाङ्गम्।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किये हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत् के आधार हैं। जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किये जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान् श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।
हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व या जगत का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है
आदि शंकराचार्य ने भी अपने विष्णुसहस्रनाम-भाष्य में ‘विष्णु’ शब्द का अर्थ मुख्यतः व्यापक (व्यापनशील) ही माना है।
विष्णु का सम्पूर्ण स्वरूप ज्ञानात्मक है। पुराणों में उनके द्वारा धारण किये जाने वाले आभूषणों तथा आयुधों को भी प्रतीकात्मक माना गया है।
ब्रह्मा, विष्णु महेश, यह तीन हिंदू—चिंतना की कोटियां हैं। फिर हिंदू जितने भी नाम हैं वह उन तीन में से किसी एक से संबंधित होंगे।
तो यह तीन मूल कोटियां हैं। और इन तीन मूल कोटियों का कारण है। हिंदू—चिंतन कई अर्थों में बहुत वैज्ञानिक है। मनोवैज्ञानिक है। और उसने जो कुछ भी निर्धारित किया है, वह किसी गहरी जरूरत को सोचकर निर्धारित किया है। मनुष्य के भीतर भी तीन प्रकार के मन हैं। और मनुष्य भी तीन तरह के मनुष्य हैं। और अगर हम मनुष्यों को बांटें, तो उसमें तीन तरह के मनुष्य हमें मिलेंगे।
तीन की संख्या हिदू—चितन में बड़ी महत्वपूर्ण है। और पहले तो ऐसा सोचा जाता था कि यह सिर्फ सांकेतिक है, लेकिन विज्ञान जितने गहरे गया वस्तुओं में, उतना ही वितान को भी लगा कि तीन की इकाई महत्वपूर्ण मालूम पड़ती है। क्योंकि जब अणु का विस्फोट किया तो पता चला कि अणु के जो घटक—अंग हैं, वे तीन हैं। ‘इलेक्ट्रॉन’, ‘न्यूट्रॉन ‘, ‘पॉजीट्रॉन’। वह अणु के घटक— अंग हैं। तीन से मिलकर ही इस जगत की मौलिक इकाई निर्मित हुई है। और फिर उसी मौलिक इकाई पर सारा जगत निर्मित है। अगर इस जगत को हम तोड़ते जाएं नीचे, तो तीन की संख्या उपलब्ध होती है और तीन के बाद तोड़े तो कुछ भी उपलब्ध नहीं होता, शून्य हो जाता है। उस शून्य को हमने परम सत्य कहा है। अनाम। उस शून्य से जो पहली इकाई निर्मित होती है तीन की, उसको हमने ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा है।
और ब्रह्मा, विष्णु महेश कहना और भी अर्थों में गहरा है। यह तीन की संख्या ही की बात नहीं है। ‘इलेक्ट्रॉन’, ‘पॉजीट्रॉन ‘ और ‘न्यूट्रॉन ‘ जिन चीजों की सूचना देते हैं, ये तीन शब्द भी उन्हीं की सूचना देते हैं। इन तीन विद्युतकण में जिनसे जगत का मौलिक आधार बना हुआ है, वितान की दृष्टि में एक तत्व विधायक है, एक निषेधक है और एक तटस्थ। एक ‘पाजिटिव’ है, एक ‘निगेटिव’ है, एक ‘न्यूट्रल’ है। और इन तीन—ब्रह्मा विष्णु महेश में भी एक ‘पाजिटिव’ है, एक ‘निगेटिव ‘ है और एक ‘ न्यूट्रल ‘ है। इसमें ब्रह्मा ‘पाजिटिव है, विधायक है। ब्रह्मा को हिंदू—चिंतन मानता है कि वह सृष्टि का आधार है। उससे ही सृष्टि निर्मित होती है। वह निर्माता है। वह विधान करता है, वह विधायक है। शिव विध्वंसक है। निषेधक है। वह तत्व इस सृष्टि को लीन करता है, विलीन करता है, समाप्त करता है—’निगेटिव ‘ है। विष्णु इन दोनों के मध्य में तटस्थ है, वह सम्हालता है। न वह निर्माण करता है, न वह विध्वंस करता है। वह केवल बीच का सहारा है। जितनी देर सृष्टि होती है, वह तटस्थ— भाव से उसे सम्हालता है।
-सभी नाम इशारे अनाम की और—ओशो (आठवां प्रवचन )
साभार ओशो , भगवान श्री रजनीश
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