economic recession in America
economic recession in America : अमेरिका में संभावित आर्थिक मंदी की आशंकाएं प्रबल हो रही हैं। इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। विभिन्न आर्थिक संकेतों और बाजार कारकों को घटा-बढ़ाकर देखने से पता चलता है कि अमेरिका मंदी की कगार पर हो सकता है।
अमेरिका में कई प्रमुख इकोनॉमिक इंडिकेटर कमजोरी के संकेत दिखाने लगे हैं। बेरोजगारी के दावे जनवरी के निचले स्तर से काफी बढ़ गए हैं, और बेरोजगारी दर जुलाई में बढ़कर 3 साल में सबसे अधिक 4.3% हो गई. इसके अलावा, आईएसएम मैन्युफैक्चरिंग PMI नौ महीने के निचले स्तर तक गिर गया है, जो मैन्युफैक्चरिंग गतिविधिओं के सिकुड़ने का संकेत देता है।
इससे पहले 2008 में आई महामंदी के दौरान भी अलग-अलग सेक्टर्स से लाखों लोगों को निकाला गया था। ऐसे में एक बार फिर मंदी के चलते नौकरियों पर संकट नजर आ रहा है।मंदी के चलते अगर अमेरिकी इकोनॉमी में सुधार नहीं हुआ तो इसका असर पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत पर भी पड़ेगा। अमेरिका में डिमांड कम होने से इसका असर भारत से होनेवाले निर्यात पर भी पड़ेगा। चूंकि, IT, फॉर्मा और कपड़ा उद्योग काफी हद तक अमेरिकी बाजार पर डिपेंड हैं, इसलिए इन तीन सेक्टर्स पर मंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है। इसके साथ ही इन सेक्टर में काम करने वाले लोगों को छंटनी की मार झेलना पड़ सकती है।
मंदी का असर ग्लोबल सप्लाई चेन पर भी पड़ेगा, जिसके चलते भारतीय निर्यातकों के लिए हालात और भी ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। निर्यात घटने का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। बता दें कि अमेरिका में मंदी को लेकर कई संकेत नजर आ रहे हैं। इनमें बेरोजगारी के आंकड़े जनवरी 2024 के निचले स्तर से भी काफी बढ़ चुके हैं। इतना ही नहीं, जुलाई 2024 में अनइम्प्लॉयमेंट रेट 4.3 प्रतिशत पर पहुंच गया है, जो पिछले तीन साल का हाइएस्ट लेवल है।
अमेरिका की आर्थिक कमजोरी अगर मंदी में तब्दील हुई तो इसके चलते दुनियाभर में निवेशकों का भरोसा कम होगा। नतीजा ये होगा कि भारत में आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी FDI में कमी आ सकती है। इसके अलावा अमेरिकी मंदी का असर टेक सेक्टर पर भी पड़ेगा। पिछले कुछ महीनों में इस सेक्टर्स से दुनियाभर में 1.30 लाख नौकरियां जा चुकी हैं।
भारत की स्थिति अलग
अमेरिकी मंदी के संभावित प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी अलग है। भारत की बढ़ती घरेलू खपत अमेरिका से कम मांग के कुछ नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सक्षम है। भारत द्वारा अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित करने से अमेरिका पर निर्भरता कम हो सकती है और संभावित मंदी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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