कटनी। नवरात्रि के अंतिम दिन कटनी जिले के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। कटनी जिले के प्रसिद्ध मंदिरों में मुख्य रूप से शारदा देवी मंदिर विजयराघवगढ़ और तिगवां माता मंदिर बहोरीबंद, वीरासन देवी मंदिर ढीमरखेड़ा , कटनी के जालपा देवी मंदिर क्षेत्र में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचे।
जिले के विजयराघवगढ़ में विराजी मां शारदा का है। विजयराघवगढ़ में विराजी माता को मैहर माता की बड़ी बहन कहा जाता है। बताया जाता है कि मां शारदा राजा प्रयागदास के साथ कटनी जिले के विजयराघवगढ़ नगर वर्ष 1826 में पहुंचीं थी। तब से यहां पर रोजाना श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। यहां चैत्र व शारदीय दोनों ही नवरात्रों में यहां पर मेला लगता है। इस चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन यहां पर भक्तों की भीड़ उमड़ी।
तिगवां इस गांव में कंकाली देवी मंदिर के मंदिर में भक्त पहुंचे। यह एक पुरातात्विक स्थल है। चैत्र नवरात्रि अवसर पर यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।
ढीमरखेड़ा तहसील के पाली गांव में 24 भुजी विरासिन माता का मंदिर प्रसिद्ध है। बिरसिंहपुर पाली की प्रतिमा अष्टभुजी है और छत्तीसगढ़ के हरवाह में स्थापित विरासिन माता की प्रतिमा दो भुजी है। इस लिहाज से ढीमरखेड़ा पाली में विराजी प्रतिमा अपने आप में अद्भुत है। मंदिर का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना बताया जाता है। जिला मुख्यालय से 100 किमी. जंगल में स्थित मंदिर में माता के दर्शन करने कई जिलों से लोग आते हैं। इस स्थान को पर्यटन विभाग ने अपने संरक्षण में लिया है और भव्य मंदिर के आसपास खुदाई में पुराना कुआं व मंदिर के अवशेष भी निकले थे। इस मंदिर में भी भीड़ उमड़ी।
वर्षों से लोगों की आस्था का केन्द्र है शहर के बीचों बीच बना मां जालपा देवी का मंदिर। जहां पर प्रदेश भर से लोग अपनी मनोकामना को लेकर परिवार सहित पहुंचते हैं। बताया जाता है कि माई की प्रतिमा जहां प्रकट हुई थी बहुत पहले वहां पर बांस का घना जंगल था और बांस के जंगल से माता की शिला प्रकट हुई थी। यहां मां जालपा की प्रतिमा के साथ ही 50 वर्ष पूर्व समिति ने जयपुर से लाकर मां जालपा, कालका, शारदा की प्रतिमाएं स्थापित की थीं और उसके अलावा 64 योगनियों की स्थापना की गई है। नवरात्र के अलावा साल भर यहां भक्तों का तांता लगता है। बुजुर्गों के अनुसार लगभग 250 वर्ष पूर्व रीवा जिले के छोटे से गांव से बिहारीलाल पंडा अचानक घर से कटनी आए थे। उस दौरान जालपा वार्ड में बांस का जंगल हुआ करता था। बताया जाता है कि मां ने उन्हें बुलाया था। जिसके बाद उन्होंने जंगल में वर्तमान मंदिर के स्थान पर सफाई प्रारंभ की तो एक शिला के रूप में मां जालपा की प्रतिमा मिली। जिसकी प्राण प्रतिष्ठा कराई गई और शुरुआत में छोटी सी मढिय़ा में मातारानी विराजित की गईं। मंदिर को लेकर लोगों की आस्था बढ़ी और प्रदेश के कई जिलों से आज लोग मंदिर पहुंचते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।
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